सोमवार, 14 जून 2010

चिड़िया

चिड़िया
पहचानती है अपना दुश्मन
चाहे वह
बिल्ली हो या काला भुजंग .

वह
जिस चोंच से
बच्चों को
चुग्गा चुगाती है
और
किसी लुभावने मौसम में
चिड़े की पीठ गुदगुदाती है
उसी चोंच को
हथियार बनाना जानती है।

आभास होते हुए भी
कि घोंसले में दुबके बच्चे
पंख उगते ही
उड़ जाएँगे फुर्र से
अनजानी दिशाओं में,
आता देख
भयंकर विषधर
चिड़िया टूट पड़ती है उस पर
जान जोखिम में डाल
करती है दर्ज
अंतिम दम तक
अपना प्रतिरोध।

भविष्य में नहीं
वर्तमान में जीती है चिड़िया
इसी लिए हार कर भी
हर बार जीतती है चिड़िया

शनिवार, 5 जून 2010

असर

"चाक़ू घुसा दूंगा ।" तीन साल के पिंटू ने सब्जी काटने का चाकू उठाया और मेहमानों की तरफ आँखे तरेर कर बोला .हालाँकि उसके चेहरे पर बाल सुलभ भोलापन था.सभी मेहमान बच्चे की इस ' कातिलाना ' अदा पर मुस्करा दिए. शर्माजी बोले,"बच्चा बड़ा होनहार है.पूत के पग पालने में दिख रहे हैं." पिंटू के पापा शर्माजी के व्यंग्य को भांप गए.बचाव पक्ष में बोले,"इस टी.वी.ने सबको भ्रष्ट कर दिया है.बच्चों का मनतो फूल की तरह कोमल होता है.और इनके सामने परोसा जाता है सेक्स ,हिंसा.बच्चे जैसा देखेंगे वैसे ही तो बनेंगे."
पापा का भाषण शायद लम्बा चलता मगर इसी समय एक और धमाका हुआ.पिंटू की मम्मी ने पुचकारते हुएकहा,"पिंटू बेटा,यह गन्दी आदत है.चाक़ू मुझे दे दे.ला,तो।"
पिंटू बेटे ने मां को भी कहा ,'चाकू घुसा दूंगा'साथ ही एक भद्दी सी गाली अपने डायलोग में और जोड़ दी.मां को बेटे कीगाली चाकू के वार से भी अधिक मर्मान्तक लगी.
" और यह गाली?क्या यह भी टी.वी.से?"शर्माजी ने फिर
छेड़ा ।
"नहीं, यह अपने बाप से ."पिंटू की मम्मी ने अपने पति की ओर कोप दृष्टि डाली।
पति महोदय को भी क्रोध आ गया.बोले,"मेहमानों के सामने तो अपनी जीभ ठिकाने रखा कर."और लगे हाथोंउनहोंने भी एक वजनदार गाली जड़ दी.

बुधवार, 2 जून 2010

भिखारी

वे खाते पीते घराने के थे।मगर उन्हें लगा कि कुछ करना चाहिये।उन्होंने अपने आस-पास ध्यान से देखा।कुछ कर दिखाने के अधिकांश क्षेत्र भाई लोगों ने पहले से ही हथिया रखे थे।सहसा उनकी नजर फुटपाथ पर भटकते एक भिखारी पर पडी।वे खुशी से उछल पडे,मानो अंधेरे में कोई प्रकाश किरण मिल गई हो।उन्होंने तेजी से कार्य आरंभ कर दिया।देखते ही देखते भिखारियों का एक संगठन खडा हो गया।हडताल, नारेबाजी और जुलूसों की बहार आ गई।उन्होंने भिखमंगो को आबाद करवाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा दिया।आखिर सरकार का सिंहासन डोला।भिखारियों का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार से मिला,जिसके नेता वे खुद थे।नतीजा यह हुआ कि भिखारियों के नाम बस्ती के छोर पर आवासीय भूखंड आबंटित हो गये।उनकी मेहनत रंग लायी।वे अब भिखारियों के रहनुमा थे।और हाँ ,भिखारियों को आबंटित किये गये भूखंडों में से एक भूखंड उनके खुद के नाम भी था।