रविवार, 18 दिसंबर 2011

सिरफिरा जनगणना अधिकारी

सभी उसे गलबा कहते हैं
जन्मा होता अगर हवेली में
तो आदर से पुकारते गुलाब,
पसीना गुलाब की तरह महकता
हवेली की मजबूत दीवारें
बचाये रखतीं उसे
लू,वर्षा,तूफान और ऐसे ही
मौसम के तमाम सदमों से;
जनगणना अधिकारी पूछता
गांव का वी.आई.पी कौन है
लोग अदब से जवाब देते
गुलाबजी ठाकुरसा

ऊंचे सपने देखने वालों की बात ही कुछ और है
गलबा नहीं देखता है सपने
वह दूसरों के सपनों को ढोता है
लादे हुए है सूरज को पीठ पर
कुचल रहा है
जेठ की तपिश को पैरों तले
मसल रहा है पौष की शीत
अपनी खुरदरी हथेलियों के बीच
पसीने में बहा रहा है
दुनिया का मैल
झेल रहा है मूसलाधार बरसात
लू के थपेड़ों को थप्पड़ मार रहा है;
दूसरों के लिए
वह सब कर रहा है
जो अपने लिए सोच भी नहीं सकता

तेरे बिन गलबा
एक पत्थर तक न हिले इस गांव का
न उगे सुन्दर दीवारें
धरती को फोड़कर,
दीवाली पर घर न चमके
समारोह में जाना रुक जाय कुलीनों का
अगर तू रातों को सो जाय,
बच्चे दूध बिन बिलबिलाएं
जो
मरखने ढोर डांगर को
तू चारा न खिलाए

गलबा
तू ही सच्चा वी.आई.पी. है
चलो
जनगणना का श्रीगणेश
तुम्हीं से करते हैं
कहता है सिरफिरा जनगणना अधिकारी

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