बदलते सन्दर्भ:कुछ शब्द चित्र
(1)
विदेह
भ्रूण पर हल चला
कर रहें हैं
अजन्मी सीता की
देह का हरण.
ले ली है सुषेणों ने
सोने की लंका में शरण
(2)
संजय
सुना रहे हैं अनवरत
अश्लीलता का
आंखों देखा हाल
मुदित हैं ध्रृतराष्ट्र.
(3)
सन्दीपनी शिष्य सुदामा
निकल पड़े हैं
उगाहने चंदा
कांख मे दबी
प्राप्ति पुस्तिका देखते ही
मित्रवर कृष्ण
उड़का देते हैं किंवाड़.
(4)
ज्यों ही
नीलआर्मस्ट्रांग ने
रखा चांद पर
पहला कदम अपना
पूरा हुआ
रावण का अधूरा सपना.
(5)
टहलते देख अन्तरिक्ष मे.
सुनीता विलियम्स को
महाराज सत्यव्रत त्रिशंकु हुए प्रसन्न
विश्वामित्र की तरह कोई
आज भी है अडिग
देवराज के विरुद्ध.
मंगलवार, 27 जुलाई 2010
शनिवार, 17 जुलाई 2010
भक्त
दोनों भक्त मंदिर प्रांगण में खड़े थे.पहला कुछ देर तक मंदिर की भव्यता और मूर्ति की सौम्यता को निहारने के बाद बोला,"इसके निर्माण में मैने रात-दिन एक कर दिये.पिछ्ले दिनों यह नगाड़ा सेट लाया हूं.बिजली से चलने वाला.अरे भाई, आज के जमाने में बजाने की झंझट कौन करे?"फ़िर स्विच ओन करते हुए कहा,लो सुनो!तबीयत बाग-बाग हो जायेगी."बिजली दौड़ते ही नगाड़े,ताशे,घड़ियाल,शंख सभी अपना-अपना रोल अदा करने लगे.पहला हाथ जोड़ कर झूमने लगा.दूसरा मंद-मंद मुस्करा रहा था.जब पहले के भक्ति भाव में कुछ कमी आई तो दूसरे ने बताया,"उधर मैने भी एक मंदिर बनाया है.आज अवसर है, चलो दिखाता हूं."
यह मंदिर और भी अधिक भव्य था.विद्युत नगाड़ा सेट यहां भी था.दूसरा बोला,"इसके साथ ही मैं तुम्हे एक और जोरदार चीज़ दिखाता हूं जो हिन्दुस्तान में अभी तक कहीं नहीं है."
उसने जेब से रिमोट कन्ट्रोल निकाल कर बटन दबाया.देखते ही देखते जो पुजारी निज मंदिर में निश्चल खड़ा था,हरकत में आकर मूर्ति की आरती उतारने लगा.साथ ही फ़िजां में स्वर गूंज उठे,"ॐ जय जगदीश हरे..."
दूसरे भक्त का सिर गर्व से उन्नत हो गया.
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शनिवार, 10 जुलाई 2010
लड़की और नाखून
तुम
अपनी
उँगलियों के नाखून
बढ़ा लो
हो सके तो
तराश कर
नुकीले कर लो
जब भी कोई तुम्हें
अपमानित करे
दसों नाखून
गड़ा दो उसके सीने में
गड़ाए रखो
रक्तरंजित होने तक
ताकि
पता चल जाए उसे
कि
अपमान जन्य पीड़ा
कितनी मर्मान्तक होती है
सब कुछ बर्दाश्त करते रहने की बजाए
शुरुआत के तौर पर
तुम इतना तो कर ही सकती हो
अपनी
उँगलियों के नाखून
लम्बे और पैने
अपनी
उँगलियों के नाखून
बढ़ा लो
हो सके तो
तराश कर
नुकीले कर लो
जब भी कोई तुम्हें
अपमानित करे
दसों नाखून
गड़ा दो उसके सीने में
गड़ाए रखो
रक्तरंजित होने तक
ताकि
पता चल जाए उसे
कि
अपमान जन्य पीड़ा
कितनी मर्मान्तक होती है
सब कुछ बर्दाश्त करते रहने की बजाए
शुरुआत के तौर पर
तुम इतना तो कर ही सकती हो
अपनी
उँगलियों के नाखून
लम्बे और पैने
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