यहां भी
रामबाबू से पहले उनकी ख्याति पहुँच गयी|
“साहब
बड़ा खड़ूस
एकाउंटेट है| फर्जीवाड़े से सख्त नफरत है उसे|” पी.ए. ने आशंका प्रकट की|
“अच्छी तरह से जानता हूं| मैंने भी कच्ची गोटियाँ नहीं खेली
हैं| साम,दाम, दण्ड, भेद सब आता है मुझे| ऐसी पटखनी दूंगा कि नानी याद आ जायेगी|” साहब ने जैसे अपने आप से कहा|
सारे
फर्जी बिल अटक गये| नियम विरुद्ध निविदाएं खारिज हो गयीं| उन बिलों का भुगतान भी
रुक गया जो प्रथमदृष्टया सही लग रहे थे परन्तु माल स्टाक रजिस्टर में नहीं चढ़ा
था| अगर चढ़ भी गया तो माल नदारद| साहब ने पहले तो प्रेम से समझाया| रामबाबू शीघ्र
ही ताड़ गये कि साहब का प्रेम भी बिलों की तरह फर्जी है| दिल की बातों के साथ बिल
की बातों का भला क्या मेल !फिर साहब ने प्रलोभन दिया कि फिफ्टी-फिफ्टी| लाखों के
वारे न्यारे हो जायेंगे और किसी को कानों कान खबर नहीं लगेगी| इससे भी बात बनते न
देख साहब ने धमकाया कि मंत्री जी से कहकर दूर गड्ढे में ट्रांसफर करवा दूंगा|
जिंदगी भर सड़ते रहोगे|”
“ पहले से ही दूर हूं| और ट्रांसफर की धमकियों से
डरने वाला नहीं हूं| बहुत हो चुके हैं| दस साल की नौकरी में बीस| समझे जनाब|”
“जा,जा| बहुत देखे हैं तेरे जैसे समझाने वाले|
बड़े-बड़े मंत्री बहती गंगा में नहा रहे हैं और तू ईमानदार की पूंछड़ी बना फिर रहा
है| इसी माजने से भुगत रहा है| ढंग का झोंपड़ा तक नहीं बना पाया| आज यहां तो कल
वहां| सोने के कड़े पहना देगी सरकार| किसी दिन लपेटे में आ गया तो सस्पेंड हो
जायेगा सस्पेंड|”
सुना है
ईमानदार आदमी बहुत डरपोक होता है| परन्तु रामबाबू चेम्बर से निकलते-निकलते वापस
पलटे| दोनों हाथ टेबल पर टिकाये| फिर साहब की आंखों में आंखें डालकर बोले,”मेरे जैसे लोग क्यों भुगत रहे हैं, बताऊं? क्योंकि
ऊपर से नीचे तक तुम्हारे माजने के लोग भरे पड़े हैं| समझे?”
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2 टिप्पणियां:
लाजवाब कथा . आंचलिक भाषा का बहुत उम्दा प्रयोग . हार्दिक बधाई
सुंदर कथा
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