शनिवार, 5 जून 2010

असर

"चाक़ू घुसा दूंगा ।" तीन साल के पिंटू ने सब्जी काटने का चाकू उठाया और मेहमानों की तरफ आँखे तरेर कर बोला .हालाँकि उसके चेहरे पर बाल सुलभ भोलापन था.सभी मेहमान बच्चे की इस ' कातिलाना ' अदा पर मुस्करा दिए. शर्माजी बोले,"बच्चा बड़ा होनहार है.पूत के पग पालने में दिख रहे हैं." पिंटू के पापा शर्माजी के व्यंग्य को भांप गए.बचाव पक्ष में बोले,"इस टी.वी.ने सबको भ्रष्ट कर दिया है.बच्चों का मनतो फूल की तरह कोमल होता है.और इनके सामने परोसा जाता है सेक्स ,हिंसा.बच्चे जैसा देखेंगे वैसे ही तो बनेंगे."
पापा का भाषण शायद लम्बा चलता मगर इसी समय एक और धमाका हुआ.पिंटू की मम्मी ने पुचकारते हुएकहा,"पिंटू बेटा,यह गन्दी आदत है.चाक़ू मुझे दे दे.ला,तो।"
पिंटू बेटे ने मां को भी कहा ,'चाकू घुसा दूंगा'साथ ही एक भद्दी सी गाली अपने डायलोग में और जोड़ दी.मां को बेटे कीगाली चाकू के वार से भी अधिक मर्मान्तक लगी.
" और यह गाली?क्या यह भी टी.वी.से?"शर्माजी ने फिर
छेड़ा ।
"नहीं, यह अपने बाप से ."पिंटू की मम्मी ने अपने पति की ओर कोप दृष्टि डाली।
पति महोदय को भी क्रोध आ गया.बोले,"मेहमानों के सामने तो अपनी जीभ ठिकाने रखा कर."और लगे हाथोंउनहोंने भी एक वजनदार गाली जड़ दी.

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