शनिवार, 17 जुलाई 2010

भक्त


दोनों भक्त मंदिर प्रांगण में खड़े थे.पहला कुछ देर तक मंदिर की भव्यता और मूर्ति की सौम्यता को निहारने के बाद बोला,"इसके निर्माण में मैने रात-दिन एक कर दिये.पिछ्ले दिनों यह नगाड़ा सेट लाया हूं.बिजली से चलने वाला.अरे भाई, आज के जमाने में बजाने की झंझट कौन करे?"फ़िर स्विच ओन करते हुए कहा,लो सुनो!तबीयत बाग-बाग हो जायेगी."बिजली दौड़ते ही नगाड़े,ताशे,घड़ियाल,शंख सभी अपना-अपना रोल अदा करने लगे.पहला हाथ जोड़ कर झूमने लगा.दूसरा मंद-मंद मुस्करा रहा था.जब पहले के भक्ति भाव में कुछ कमी आई तो दूसरे ने बताया,"उधर मैने भी एक मंदिर बनाया है.आज अवसर है, चलो दिखाता हूं."
यह मंदिर और भी अधिक भव्य था.विद्युत नगाड़ा सेट यहां भी था.दूसरा बोला,"इसके साथ ही मैं तुम्हे एक और जोरदार चीज़ दिखाता हूं जो हिन्दुस्तान में अभी तक कहीं नहीं है."
उसने जेब से रिमोट कन्ट्रोल निकाल कर बटन दबाया.देखते ही देखते जो पुजारी निज मंदिर में निश्चल खड़ा था,हरकत में आकर मूर्ति की आरती उतारने लगा.साथ ही फ़िजां में स्वर गूंज उठे,"ॐ जय जगदीश हरे..."
दूसरे भक्त का सिर गर्व से उन्नत हो गया.
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5 टिप्‍पणियां:

उमेश महादोषी ने कहा…

अच्छी लघुकथा है। नए-नए बिषयों पर अच्छी रचनाएँ दे रहे हैं आप। श्रद्धेय बलराम अग्रवाल जी से आपका परिचय तो मिला था, अब आपके ब्लॉग को भी ढून्ढ लिया है मैंने। कथा और कविता दोनों पर अच्छी पकड़ है आपकी .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीय माधव नागदा जी
आप तो हिंदी - राजस्थानी में निरंतर सृजन करते हैं वे ही माधव नागदा जी हैं न ?
बहुत अच्छा लगा आपको अंतर्जाल पर देख कर । भक्ति और आस्थाओं का क्षरण दर्शाती अच्छी लघुकथा है भक्त!
ब्लॉग संसार में आपका स्वागत है …
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आशीर्वाद देने अवश्य पधारिएगा …
बस शस्वरं पर क्लिक कीजिए , और आ जाइए …
सादर शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

roshan vikshipt ने कहा…

अच्‍छी रचना

संगीता पुरी ने कहा…

इस नए ब्‍लॉग के साथ आपका हिंदी चिट्ठाजगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!