तुम
अपनी
उँगलियों के नाखून
बढ़ा लो
हो सके तो
तराश कर
नुकीले कर लो
जब भी कोई तुम्हें
अपमानित करे
दसों नाखून
गड़ा दो उसके सीने में
गड़ाए रखो
रक्तरंजित होने तक
ताकि
पता चल जाए उसे
कि
अपमान जन्य पीड़ा
कितनी मर्मान्तक होती है
सब कुछ बर्दाश्त करते रहने की बजाए
शुरुआत के तौर पर
तुम इतना तो कर ही सकती हो
अपनी
उँगलियों के नाखून
लम्बे और पैने
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
एक फिमेले होकर और ऐसी रचना पढ़ कर सबसे पहले वाह ही निकलेगी.
कितनी सही और जबरदस्त बात कह दी आपने.
जागृत करती हुई रचना.
आभार.
बहुत सशक्त रचना....आभार
आप कृपया यहाँ भी आयें...
http://geet7553.blogspot.com/2010/07/blog-post_14.html
jabardast andaaz hai aapke lekhan ka.
आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
बहुत खूब ... मन के भाव कवि की कल्पना को कहाँ तक ले जाते हैं .... बहुत सार्थक रचना ...
Aapki rachna aisi, aisa lagta hai jaise bolti ho maasi
Aapki rachna aisi, man ko chu jaye jaisi,
Aapki rachna hai aisi,jo hume deti hai power jaise,
Aapki rachna me wo baat hai, jo mahilao ko himmat deti hai,
एक टिप्पणी भेजें