बुधवार, 2 जून 2010

भिखारी

वे खाते पीते घराने के थे।मगर उन्हें लगा कि कुछ करना चाहिये।उन्होंने अपने आस-पास ध्यान से देखा।कुछ कर दिखाने के अधिकांश क्षेत्र भाई लोगों ने पहले से ही हथिया रखे थे।सहसा उनकी नजर फुटपाथ पर भटकते एक भिखारी पर पडी।वे खुशी से उछल पडे,मानो अंधेरे में कोई प्रकाश किरण मिल गई हो।उन्होंने तेजी से कार्य आरंभ कर दिया।देखते ही देखते भिखारियों का एक संगठन खडा हो गया।हडताल, नारेबाजी और जुलूसों की बहार आ गई।उन्होंने भिखमंगो को आबाद करवाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा दिया।आखिर सरकार का सिंहासन डोला।भिखारियों का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार से मिला,जिसके नेता वे खुद थे।नतीजा यह हुआ कि भिखारियों के नाम बस्ती के छोर पर आवासीय भूखंड आबंटित हो गये।उनकी मेहनत रंग लायी।वे अब भिखारियों के रहनुमा थे।और हाँ ,भिखारियों को आबंटित किये गये भूखंडों में से एक भूखंड उनके खुद के नाम भी था।

4 टिप्‍पणियां:

आचार्य उदय ने कहा…

आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

आचार्य जी

दिलीप ने कहा…

badhiya...

शोभना चौरे ने कहा…

aaj kal bhikhariyo ka hi jmana hai
vo khavat rooth gai
"bin mange moti mile ,mange mile na bheekh ."
badhiya laghukatha ,

Jasmeet.S.Bali ने कहा…

bahut badia